नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका काम की बात में और इस विडियो में हम आपको बताएँगे नागरिकता (संशोधन) अधिनियम के बारे में

तो चलिए शुरू करते है |

नागरिकता (संसोधन) अधिनियम बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यकों को भारतीय नागरिकता प्रदान करता है| इन देशों में पिछले कई दशकों से हिन्दुओं, सिक्ख, जैन, बौद्ध और पारसी लोगों के साथ शारीरिक एवं मानसिक उत्पीडन हो रहा है| इसलिए इन धर्मों के अनुयायी समय-समय पर विस्थापित होकर भारत आते रहे है. विडंबना यह थी कि यहाँ भी उनके साथ विदेशियों जैसा व्यवहार किया गया. तकनीकी तौर पर उनके पास भारत की नागरिकता हासिल करने का कोई ठोस दस्तावेज उपलब्ध नहीं था. इसीलिए एक भारतीय नागरिक को मिलने वाली सारी सुविधाओं जैसे जमींन खरीदना, नोकरी, बैंक अकाउंट, पेंशन, घर लेना, आधार कार्ड, पैन कार्ड, किसी भी तरह का licence जैसे अनेक चीजो से वह वंचित रहे है|

धार्मिक आधार पर भेदभाव एक शर्मनाक घटना है| जिसका किसी भी राष्ट्र में होना वहां के मानवीय मूल्यों का ह्रास दर्शाता है. पाकिस्तान की नेशनल असेम्बली के अनुसार हर साल 5,000 विस्थापित हिन्दू भारत आते है| (डॉन, 13 मई, 2014)

जबकि यह संख्या अधिकारिक आंकड़ों से बहुत ज्यादा है| हमारे पडोसी देशों में अल्पसंख्यकों खासकर हिन्दुओं को जबरन धर्म परिवर्तन, नरसंहार, बलात्कार और संपत्तियों पर अवैध कब्ज़ा सहना करना पड़ता है| इन सबसे बचकर जब वह भारत आते है, तो यहाँ उन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य और दूसरी मूलभूत सुविधाएँ नहीं मिल सकती. यह पूर्ण रूप से मानवीय अधिकारों का हनन है|

बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भी अल्पसंख्यकों के साथ दुर्व्यवहार की समान ख़बरें सामने आती रहती है| ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि यह तीनों देश धार्मिक कट्टरता, चरमपंथ और आतंकवाद से ग्रसित है| (अफगानिस्तान में 6, बांग्लादेश में 14 और पाकिस्तान में 53 आतंकवादी समूह सक्रिय है. https://www.satp.org/)

साथ की वहां राजनैतिक अस्थिरता और निष्क्रियता ने हालातों को असामान्य बना दिया है| भारत सरकार ने कई बार इन अल्पसंख्यक लोगों के अधिकारों का समर्थन किया, लेकिन वह हमेशा अपर्याप्त रहा|

चलिए अब थोडा विस्तार से आसान भाषा में जानते है नागरिकता (संशोधन) अधिनियम या बिल क्या है|

इस विधेयक में पाकिस्तान,बांग्लादेश एवं अफगानिस्तान में धार्मिक आधार पर उत्पीड़न के शिकार गैर मुस्लिम शरणार्थियों जैसे हिंदू ,जैन ,बौद्ध ,सिख ,पारसी और ईसाई समुदाय के लोगों) को भारत की नागरिकता देने का प्रावधान है।

नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 के तहत सिटीजनशिप एक्ट 1955 में बदलाव का प्रस्ताव है। इस बदलाव के जरिए गैर मुस्लिम शरणार्थियों जैसे हिंदू ,जैन ,बौद्ध ,सिख ,पारसी और ईसाई समुदाओ को नागरिकता दी जाएगी जो बीते 1 साल से लेकर 6 साल तक भारत में रह रहे हैं।

फिलहाल भारत में सिटीजनशिप एक्ट 1955 के तहत नागरिकता हासिल करने की अवधि 11 साल है इसी नियम में ढील देकर नागरिकता हासिल करने की अवधि को 1 साल से 6 साल तक किया जाना है।

इस विधेयक के जरिए पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के हिंदू ,जैन, बौद्ध, सिख और ईसाई समुदाय के शरणार्थियों को 11 साल के बजाय एक से छह वर्षों में ही भारत की नागरिकता मिल सकेगी।

नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 के तहत गैर मुस्लिम शरणार्थी यदि भारत मैं वैध दस्तावेज के बगैर भी पाए जाते हैं उन्हें जेल नहीं भेजा जाएगा ना ही उन्हें निर्वासित किया जाएगा।

चलिए अब जानते है नागरिकता संशोधन बिल का विरोध क्यों है?

विपक्ष के नेताओं ने आर्टिकल-14, आर्टिकल-21 और आर्टिकल-25 का हवाला देते हुए इस विधेयक को गैर संवैधानिक बताया है। जबकि केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने कहा है कि नागरिकता संशोधन विधेयक किसी भी तरह से आर्टिकल-14, 21 और 25 का उल्लंघन नहीं करता है।

चलिए जानते है इन आर्टिकल से बारे में

आर्टिकल-14 : समानता का अधिकार

भारतीय संविधान में अनुच्छेद-14 की यही परिभाषा है।
राज्य, भारत के राज्यक्षेत्र में किसी व्यक्ति को कानून के समक्ष समता से या कानून के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा।’

इसका मतलब हुआ कि सरकार भारत में किसी भी व्यक्ति के साथ भेदभाव नहीं करेगी।

भारतीय संविधान के भाग-3 समता का अधिकार में अनुच्छेद-14 के साथ ही अनुच्छेद-15 जुड़ा है। इसमें कहा गया है, ‘राज्य किसी नागरिक के खिलाफ सिर्फ धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमें से किसी के आधार पर कोई भेद नहीं करेगा।’

अब विपक्ष का ये कहना है कि नागरिकता संशोधन बिल धर्म के आधार पर लाया गया है। इसमें एक खास धर्म के लोगों के साथ भेदभाव किया जा रहा है, जो अनुच्छेद-14 का उल्लंघन है। हालांकि केंद्र सरकार ने इससे इनकार किया है।

आर्टिकल-21 : सुरक्षा व आजादी का अधिकार

कानून द्वारा तय प्रक्रिया को छोड़कर किसी भी व्यक्ति को जीने के अधिकार या आजादी के अधिकार से वंचित नहीं रखा जाएगा।

यह भारत के नागरिक के मूलभूत अधिकारों में से एक है।

आर्टिकल-25 : धार्मिक स्वतंत्रता

संविधान का आर्टिकल-25 देश के सभी नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार देता है। इसके तहत प्रत्येक नागरिक को धर्म को अबाध रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार करने का समान अधिकार होगा।

एक वजह और जिसकी वजह से इसका विरोध हो रहा है की इस बिल के प्रावधान के मुताबिक पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आने वाले मुसलमानों को भारत की नागरिकता नहीं दी जाएगी। कांग्रेस समेत कई पार्टियां इसी आधार पर बिल का विरोध कर रही हैं।

और देश के पूर्वोत्तर राज्यों में इस विधेयक का विरोध इसीलिए किया जा रहा है, और उनकी चिंता है कि पिछले कुछ सालो में बांग्लादेश से बड़ी तादाद में आए हिन्दुओं को नागरिकता प्रदान की जायेगी| तो वो पूर्वोत्तर राज्यों की संस्कृति के लिए कही खतरा न बन जाए|

तो अब आप हमे बताईये क्या प्र्द्तरित हिन्दुओ को दुनिया के इकलोते हिन्दू देश पे पनाह नहीं मिलनी चाहिए आपनी राय कमेंट में जरुर रखे और इस चैनल को सब्सक्राइब कर ले|

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