इन जिंदा नर कंकालो की तस्वीरे देख रहे है आप | इनकी ये हालत भूख से हुई है| 2 वक्त की रोटी न मिलने से ये इंसान चलती फिरती लाशो में तब्दील हो गए थे| और ये लोग किसी प्राकृतिक आपदा या किसी भयंकर बीमारी के शिकार नहीं हुए थे|बल्कि मानव निर्मित आपदा के शिकार हुए|

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बंगाल प्रांत में अकाल की विभीषिका का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि लोग इतने कमजोर हो गये थे कि उनमें मरे हुए अपने परिजनों को दफ़नाने की भी ताकत नहीं बची थी| कोलकाता की सड़कों पर कंकालों का ढेर लग गया था। भूख से तडपती हुई मांएं सड़कों पर दम तोड़ रही थीं। महिलाओं में इतनी हिम्मत न थी कि दुधमुंहे बच्चों को आंखों के सामने दम तोड़ता देख पातीं इसिलिय भूख से बिख्लाते अपने बच्चों को नदी में फेंक रही थी। बाकी लोग पत्तियां और घास खाकर जिंदा थे। और न जाने ही कितने लोगों ने ट्रेन के सामने कूदकर अपनी जान दे दी थी। उस वक्त मंजर ऐसा था कि कचरे में फेके गए खाने को भी उन्हें जानवरों से छीन कर खाना पड़ता था। जमीन पर बिखरे एक-एक दाने के लिए आपस में लोग लड़ते थे |

उस समय के लोग बताते है| लोग भूखे मर रहे थे क्योंकि ग्रामीण भारत में खाने-पीने की चीज़ें उपलब्ध नहीं थीं. इसलिए लोग कोलकाता, ढाका जैसे बड़े शहरों में खाने और आश्रय की तलाश में पहुंचने लगे. लेकिन वहां न खाना था, न रहने की जगह. उन्हें रहने की जगह सिर्फ़ कूड़ेदानों के पास ही मिल रही थी, जहां उन्हें कुत्ते-बिल्लियों से संघर्ष करना पड़ता था ताकि कुछ खाने को मिल जाए.

Bengal Famine 1943 Reason Winston Churchill

अस्थियां इस कदर उभरी हुईं कि जैसे कभी भी चमडी को भेदकर बाहर निकल जाएं. दुर्गन्ध छोड़तीं लाशें. लाशों को नोंचते कुत्ते और गिद्ध! दूसरी तरफ ब्रिटिश अधिकारी और मध्यवर्ग भारतीय क्लबों और अपने घरों में गुलछर्रे उड़ा रहे थे।

ब्रितानी इतिहासकारों के अनुमानों के अनुसार इसमें 15 लाख लोग मारे गए थे लेकिन भारतीय इतिहासकारों का कहना है की यह संख्या 30 से 60 लाख तक थी|

1943-44 में ततकालीन बंगाल यानी वर्तमान बांग्लादेश, भारत का पश्चिम बंगाल, बिहार और उड़ीसा इन जगहों पर एक भयानक अकाल पड़ा था | इतिहास में इस अकाल को ‘द ग्रेट बंगाल फेमिन’ नाम से जाना जाता है |

ये दुसरे विश्व युद्ध की बात है कहा गया की अकाल का कारण अनाज के उत्पादन का घटना था, जबकि बंगाल से लगातार अनाज का निर्यात हो रहा था। तो क्यों लोगो को ऐसे भुखमरी से तिल तिल करके मरना पड़ा|

अगर कहा जाए तो दूसरा विश्व युद्ध जुलाई 1937 में जापान के चीन पर हमले के साथ ही शुरू हो गया था| क्युकी जापान एशिया पर राज करना चाहता था | और इसके 2 साल बाद सितम्बर 1939
में ब्रिटेन इस युद्ध में कूदा. चूंकि भारत ब्रिटेन का उपनिवेश था, इसलिए इस युद्ध में हिस्सा लेने के लिए भारी संख्या में भारत से सैनिकों को भी भेजा गया|

16 अक्टूबर 1942 युद्ध की बमबारी के बीच बंगाल में करीब 142 किलोमीटर की रफ्तार से तूफान आया था| तूफान ने तो फसल को तो नुकसान पहुंचाया ही साथ ही साथ तूफान इतना विध्वंसकारी था कि उसने 11000 लोगों की जिंदगी को लील लिया थी और सबकुछ बहा ले गया|

ब्रिटिश हुकूमत को इस बात की जानकारी थी कि इससे बंगाल के लोगों की जिंदगी कितनी दयनीय हो जायेगी | लेकिन ब्रिटिश सरकार ने इस और ध्यान नहीं दिया | उल्टा अपने सैनिको के लिए खाद्य सामग्री की खरीद में इजाफा कर दिया | क्युकी वर्ष 1940-1941 में सैनिकों के लिए 88 हजार टन गेहूं खरीदा गया था, जो अगले साल यानी 1941-1942 में बढ़ाकर 2,38,000 टन कर दिया गया |

यंहा तूफान की वजह से फसलों में कई तरह की बीमारियां लग जाने से खाद्य सामग्री के उत्पादन में गिरावट आ चुकी थी, लेकिन कोई एहतियाती कदम नहीं उठाया गया.

और सन् 1943 में मई-जून आते-आते अनाज की समस्या ने विकराल रूप ले लिया और बंगाल में त्राहिमाम मच गया | अकाल को लेकर इंग्लैंड के प्रधानमंत्री को भारत से टेलीग्राम भेजा गया | उस टेलीग्राम में भूख से मर रहे लोगों का जिक्र था और मदद की गुहार लगायी गई थी |

उस समय इंग्लैंड का प्रधानमंत्री विन्सटन चर्चिल था| विंस्टन चर्चिल, एक White supremacist यानी गोर लोग सर्वोच्च होते है की सोच रखने वाला, पक्का उपनिवेशवादी और साम्राज्यवादी था|

इस चर्चिल ने अपने करियर की शुरुआत फौजी के रूप में की थी. और कई युद्धों में हिस्सा लिया था| सन् 1900 में पहली बार उसने चुनाव लड़ा और जीत हासिल की और सन् 1940 में वो इंग्लैंड का प्रधानमंत्री बन गया |

खेर ये खबर इंग्लॅण्ड पहुंची| बंगाल की त्रासदी के लिए ब्रिटिश मंत्रिमंडल की आपात बैठक बुलायी गयी. बैठक में चर्चिल, भारत के सेक्रेटरी ऑफ स्टेट लीओ अमेरी, भारत का वायसराय बनने को तैयार फील्ड मार्शल आर्किबाल्ड वेवेल व अन्य ऑफिसर उपस्थित थे | बैठक में बंगाल के अकाल के बारे में बताया गया और वहां तत्काल खाद्यान से भरे जहाज भेजने की अपील की गयी| चर्चिल ने इस अपील को बेरहमी से ठुकराते हुए दो टूक शब्दों में कह दिया कि बंगाल में अकाल के लिए वे लोग (बंगाल के निवासी) खुद जिम्मेवार हैं

उसने आर्मी के सचिव लियोपोल्ड से कहा, मैं भारतियों से नफरत करता हूँ, वह जानवर हैं और जानवर जैसे धर्म को मानते हैं’I उसने कई बार अपने मंत्रिमंडल को बताया, ‘अकाल उनकी यानी भारतियों की खुद की गलती, खरगोशो की तरह बच्चे पैदा करने के कारण से हुआ है’I

और चर्चिल ने टेलीग्राम के जवाब में लिखा था, ‘अकाल से अब तक अधनंगे भिकारी गांधी की मौत क्यों नहीं हुई?’

दरअसल द्वितीय विश्वयुद्ध के समय बर्मा पर जापान के कब्जे के दौरान वहां से चावल का आयात पूरी तरह से रुक गया था और ब्रिटिश शासन ने युद्ध में लगे अपने सैनिकों के लिए चावल की जमाखोरी करना शुरू कर दी थी। ‘डिनायल पॉलिसी’ के तहत बंगाल की खाड़ी के दक्षिणी तट समेत कई हिस्सों में चावल की सप्लाई रोकी गई। साथ ही, तत्कालीन बंगाल के गवर्नर जॉन हर्बर्ट ने शहर में तुरंत फसलों को हटाने और खत्म करने का निर्देश दिया।

Winston Churchill cause of Bengal famine 1943

जिस से खाद्य सामग्री जापानियों के हाथ न लग जाए| इस वजह से पूर्वी बंगाल में चावलों के भंडारों को जब्त करके नष्ट कर दिया गया| अंग्रेजों ने 46000 से ज्यादा नावों को जब्त किया और सारा ट्रांसपोर्टेशन सिस्टम लगभग खत्म ही हो गया था। जिससे भोजन और लोगों की आवाजाही रुक गयीI किसान, व्यापारी, मछुआरे और नाविक गरीब हो गये, और भोजन की आवाजाही के पूर्ण प्रतिबन्ध की वजह से भूख और भुखमरी के शिकार हुए| और अग्रेज सरकार ने भारत से अनाज को यूरोप में अंग्रेज सैनिकों के लिए भेजना शुरू कर दिया जिसकी उन्हें कोई जरुरत भी नहीं थी

और अंग्रेजों ने भारत के बड्डे हिस्से में किसानों को अनाज और गेहूं उगाने पर पाबन्दी लगा दी, और इसकी जगह उन्हें नील और अफीम की खेती करने का हुक्म दिया, जिसे निर्यात किया जा सके और अंग्रेजों के खजाने के मोटी रकम कमाई जा सके| इसी वजह से भारत में खाद्दान का उत्पादन काफी हद तक गिर गया, और जब बंगाल की धान की फसल ख़राब हुई तब कोई सहायक भण्डार नहीं थे|

इसकी वजह से बंगाल में बड़ा भयंकर अकाल पड़ा| बताया जाता है कि ब्रिटेन के प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने भारतीयों को भूखे मरने के लिए जानबूझकर छोड़ा था। ये पहली बार नहीं था जब अंग्रेजो के अकाल से मौते नहीं हुई हो| 1770, 1783, 1866, 1973, 1892 और 1897 के अकालों के लिए अंग्रेज़ भी जिम्मेदार थे, जिसके दौरान करोडॉ लोगो की जानें गयीं|

Geophysical Research Letters नाम के एक जर्नल में एक स्टडी प्रकाशित हुई थी। इसमें रिसर्च करने वाले आईआईटी-गांधीनगर, यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफ़ोर्निया लॉस एंजेल्स और इंडियन मेट्रोलॉजिकल डिपार्टमेंट के लोग शामिल थे। इस जांच के लिए खोजकर्ताओं ने सारे पुराने मौसम और मिट्टी के डाटा का प्रयोग किया। जिसमें उन्होंने अकाल को प्राकृतिक नहीं बल्कि चर्चिल की खराब नीतियों को माना। रिसर्च के मुताबिक, 1943 में ठीक बारिश हुई थी, ऐसे में पूर्ण रूप से चर्चिल की पॉलिसी ने ही इस अकाल को जन्म दिया था। चर्चिल ने इस आपदा को अकाल घोषित करने से भी इनकार कर दिया था|

अकाल के दौरान कई ब्रिटिश अधिकारियों समेत भारतीय अधिकारियों ने लंदन से फूड सप्लाई की गुहार लगाईं थी। लेकिन हर बार चर्चिल ने मना कर दिया।

बंगाल अकाल का पूरा इतिहास

इस अकाल से वही लोग बचे जो रोजगार की तलाश में कोलकाता (कलकत्ता) चले आए थे या वे महिलाएं जिन्होंने अपने बच्चो के दूध और खाने के लिए मजबूरी में वेश्यावृत्ति करनी शुरू कर दी।

1943 की गर्मी से अकाल शुरू हुआ था. सन् 1944 के शुरुआती दिनों तक बंगाल डेथ चेंबर बना रहा. सन् 1944 में जब बंगाल में चावल की बम्पर उपज हुई, तब जाकर अकाल का कहर कम हुआ. लोगों के घरों में अनाज पहुंचा और उन्होंने उसे छुआ…और पेट की भूख मिटायी.

धीरे-धीरे जनजीवन पटरी पर लौटने लगा. लेकिन, आंखों के सामने भूख से छटपटाकर मरते लोगों का दर्दनाक मंजर वे कभी भूल नहीं पाए…और चर्चिल को भी नहीं!

मित्रो ये बंगाल के इतिहास का ऐसा दौर था जिसे लोग भूल गए है, अंग्रेजो ने जो जुल्म ढाहे उन्हें भूल गए है| हम धन्यवाद करना चाहते है Someone का जिन्होंने हमे इसके बारे में हमे अवगत कराया और हमसे ये विडियो बनाने के लिए कहा|

मित्रो इस विडियो में मैं ये नहीं कहूँगा की इस को लाइक करे, मैं कहूँगा इस को जितना हो सके dislike करे और दुसरो से करवाए| हा इस विडियो को शेयर जरुर करिए फेसबुक पे व्ह्तासप्प पर दुसरे सोशल mediums पर ताकि ये जानकारी लोगो तक पहुचे और उन्हें भी इस त्रासदी के बारे जानकरी मिले |

मिलते है आपसे अगली विडियो में तब तक के लिए नमस्कार |

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