महाबली महायोद्धा ब्रह्मचारी श्री हनुमान को कौन नहीं जानता| जिन्होंने आसानी से द्रोणागिरी पर्वत उठा लिया था, विशाल समुन्द्र पार कर लिया था, पूरी लंका को जला दिया था, विशाल सेना को मार गिराया था, सूरज को निगलने उड़ चले थे, वज्र का वार सहन किया था, महाभारत के युद्ध के दौरान अर्जुन के रथ की रक्षा की थी|
नमस्कार दोस्तों, स्वागत है आपका काम की बात में, और आज हम बात करेंगे 7 चिरंजीवियो में से एक श्री हनुमान जी के बारे में और जानेंगे कि कैसे वे चिरंजीवी बने, वो आज कहां हैं और क्यूं आजतक कलयुग में रुके हुए हैं। तो चलिए शुरू करते हैं
भूमिका:
हिन्दू पौराणिक धर्म ग्रंथो में कही 7 तो कहीं 8 चिरंजीवियों का उल्लेख मिलता हैं और ये सतयुग, द्वापरयुग, त्रेतायुग के चिरंजीवी हैं जो की आज कहाँ हैं कोई नहीं जानता| हम आपको बताएँगे एक एक करके सभी चिरंजीवियों के बारे में की वे कौन है, कहाँ हैं, क्यूं जीवित हैं|
7 चिरंजीवियों में मुख्य रूप से श्री हनुमान जी ,महर्षि व्यास ,परशुराम जी ,विभीषण ,राजा बलि जी ,अश्वत्थामा ,कृपाचार्य और कई कई स्थानों में ऋषि मार्कंडय और जामवंत का भी उल्लेख मिलता है| और इनमे कुछ वरदान तो कुछ श्राप के कारण जीवित हैं| तो चलिए सबसे पहले शुरू करते हैं हनुमान जी से| जय श्री राम…
हनुमान
हनुमान जी राजा केसरी और रानी अंजना के पुत्र थे, इसीलिए हनुमान जी अंजनेय, मारुति, बजरंगबली के नाम से भी जाने जाते हैं।
वे भगवान शिव के ग्यारहवें रुद्र अवतार हैं और पवन पुत्र के रूप में भी जाने जाते हैं। ज्योतिषीयों के सटीक गणना के अनुसार हनुमान जी का जन्म 58 हजार 112 वर्ष पहले त्रेतायुग के अन्तिम चरण में चैत्र पूर्णिमा को मंगलवार के दिन चित्रा नक्षत्र व मेष लग्न के योग में सुबह 6.03 बजे भारत देश में आज के झारखण्ड राज्य के गुमला जिले के आंजन नाम के छोटे से पहाड़ी गाँव के एक गुफा में हुआ था।

शिक्षा
हनुमान के जीवन की शुरुआत अपनी माता और फिर सूर्य देव के शिक्षाग्रहण से हुई थी। उन्होंने शिक्षा की प्राप्ति के लिए सूरज के साथ उन्ही की गति से सफ़र किया था क्यूंकि सूर्य देव एक जगह रुक कर ज्ञान नहीं दे सकते थे| शिक्षा को पाने के इतने लगन को देख कर वे काफी प्रभावित हुए और उन्होंने शिक्षा देना प्रारंभ किया| और फिर हनुमान जी ने अस्त्र, शस्त्र, ज्योतिष, और अन्य विद्याओं का ज्ञान प्राप्त किया। वे युद्धकला और अपनी अद्वितीय शक्तियों में माहिर थे। यही कारण है की हनुमान जी को बल, बुद्धि, अष्ट सिद्धि और नौ निधि का दाता माना जाता है|
बाल लीला

हनुमान जी के बचपन की शरारती कथा तो आप सब ही जानते होंगे जब – बाल्यकाल में वीर मारुति एक बार सूर्यदेव को फल समझकर खाने निकल पड़े थे| इस दौरान सभी देवता उन्हें देख रहे थे और उनको भय था कि अगर मारुति ने सूर्य को खा लिया तो प्रलय आ जाएगा| वहीं, उस समय सूर्यग्रहण भी था और राहू सूर्य भगवान को ग्रहण करने के लिए वहां पहुंचे, लेकिन मारुति ने अपनी गदा से उसे घायल कर दिया| इसके बाद राहू सीधे देवराज इंद्र के पास पहुंचे और मारुति को रोकने के लिए प्रार्थना की| फिर इंद्र देव हनुमान जी के पास पहुंचे और मारुती को रोकने का प्रयास किया परन्तु जब वे नहीं माने तो उन्होंने उन पर वज्र से प्रहार कर दिया| और इस घटना से मारुति अत्यंत घायल हो गए और बहुत ही ज्यादा कमज़ोर पड़ गए| इस घटना से नाराज होकर पवन देव ने अपना प्रवाह रोक दिया था| हवा के प्रवाह के रुकने से सभी जीव जंतुओं प्राणियों का जीना असंभव था| यह देखकर सभी ब्रह्मा जी के पास पहुंचे और उनसे इसका हल करने की प्रार्थना की| फिर सभी 33 कोटि देवी देवता पवन देव और हनुमान जी के पास पहुंचे जहाँ पर हनुमान जी घायल पवन देव के पास पड़े हुए थे| ब्रह्माजी ने हनुमान जी को स्वस्थ किया और उन्हें अमरत्व भी प्रदान किया| इसके साथ ही अग्नि-जल-वायु ने भी अभय का वरदान दिया| और साथ ही सूर्यदेव ने भी बजरंगबली को विद्या-दान का वर दिया था| इसी प्रकार हनुमान जी को असीम शक्तियां भी मिली और वे अत्यंत शक्तिशाली बन गए|
शक्ति प्रदर्शन

हनुमान जी के अदबुध किस्से तो आप सभी जानते ही होंगे जैसे उन्होंने उड़ कर समुद्र पार करके लंका तक का सफ़र किया और रास्ते में आने वाले सभी मुशिकिलों को आसानी से पार कर लिया था| और बाद में उन्होंने सोने की लंका को जला दिया था| राम सेतु का निर्माण किया| युद्ध के दौरान लक्ष्मण जी के लिए जड़ी बूटी न मिलने पर पूरा पर्वत ही उठा लिया था| युद्ध में बड़े-बड़े असुरो का विनाश कर दिया था| महाभारत में अर्जुन के रथ के ऊपर विराजमान होकर उनकी रक्षा की थी और सम्पूर्ण गीता का ज्ञान भी पाया था|
रामायण
एक कथा के अनुसार तो हनुमान जी को ब्रह्मा जी के द्वारा अमर होने का वर मिला था| परन्तु इसी के साथ माता सीता ने भी हनुमान जी को चिरंजीवी होने का वर दिया था| जब रावण ने माता सीता को बंधी बना कर लंका में रखा हुआ था तो माता काफी पीड़ा में थी| तब हनुमान जी श्री राम की अंगूठी लेकर माता सीता के पास पहुंचे| जब उन्होंने वो अंगूठी माता को दी तो माता को काफी सुकून मिला और तब उन्होंने हनुमान जी को चिरंजीवी होने का वर दिया की वे ब्रह्माण्ड के अंत होने तक जीवित रहेंगे|
चिरंजीवी
परन्तु सवाल ये उठता है की क्यूं जीवित रहेंगे और अगर जीवित हैं तो आज कहाँ है और कोई उनसे आजतक मिला है क्या? और यदि कोई उन्हें देख चूका है, मिल चूका है तो क्या हम उनसे मिल सकते हैं? कहते है की कलयुग में महान कवी तुलसीदास को सम्पूर्ण रामायण स्वयं हनुमान जी ने ही सुनाई थी| और तभी जाकर उन्होंने इतनी सुन्दर राम्चरित्मानस की चौपियाँ और हनुमान चालीसा की रचना की थी| और कुछ खबरों के अनुसार हनुमान जी हर 41 साल में एक बार, श्रीलंका के जंगलों में “मातंग” आदिवासियों से मिलने आते हैं| बताया जाता है की 27 मई 2014 हनुमान जी का इस जंगल में बिताया आखिरी दिन था इसके बाद वे 41 साल बाद यानी 2055 में आएंगे| इनकी आदिवादियों की तादाद काफी कम है और ये श्रीलंका के अन्य कबीलों से भी काफी अलग हैं| और इस कबीले का इतिहास रामायण काल से जुड़ा है|

आज कहाँ है हमारे श्री हनुमान?
मान्यता हैं की गंधमादन पर्वत पर कलयुग में भगवान हनुमान का निवास है, इसके कई प्रमाण कई जगहों पर मिलते हैं| कहा जाता है कि कई साधु-संतों ने भी इसी स्थान पर तपस्या कर हनुमान जी के दर्शन प्राप्त किए और महर्षि कश्यप ने भी इसी पर्वत पर तपस्या की थी| यह पर्वत कैलाश पर्वत के उत्तर में स्थित है| भगवान राम से अमर होने का वरदान प्राप्त कर हनुमान जी ने इसी पर्वत को अपना निवास स्थान चुना था| अन्य मान्यता के अनुसार किष्किंधा अंजनी पर्वत का उल्लेख रामायण में मिलता है| कर्णाटक के कोप्पल और बेल्लारी जिले के पास किष्किंधा क्षेत्र में इसी पर्वत पर माता अंजनी ने तपस्या की थी और भगवान राम और हनुमान जी की मुलाकात भी इसी पर्वत पर हुई थी| कहा जाता है कि कलयुग में भी इस पर्वत पर हनुमान जी निवास करते हैं|
भविष्य
क्या आप जानते हैं की हनुमान जी रामायण काल के वो चिरंजीवी है जिन्हें सबसे ज्यादा शक्तिशाली योद्धा कहां जाता है और आजतक उन्होंने अपनी पूरी शक्तियों का प्रयोग नहीं किया है। और भविष्य पुराण के अनुसार वे इसीलिए जीवित हैं क्योंकि वे कल्कि अवतार के गुरु बनेंगे और उनका साथ भी देंगे| ये भी कहा जाता है की उनकी शक्ति कल्कि अवतार के युद्ध में खुलकर बाहर आएगी जिससे तीनों लोकों में भूचाल आ जाएगा| भगवान कल्कि, विष्णु भगवान के दसवें अवतार होंगे जो कलियुग के अंत में पृथ्वी पर आएंगे। उनका मुख्य उद्देश्य धर्म की रक्षा करना, अधर्मियों को सजा देना और सत्य को स्थापित करना होगा।
तो दोस्तों आपको ये जानकारी कैसे लगी हमें कमेंट करके ज़रूर बताएं और इस जानकारी को अपनों को ज़रूर शेयर करे और उन्हें भी अद्बुद्ध ज्ञान और हमारे इतिहास के बारे में और जानने में मदद करे, आज के लिए इतना ही परन्तु हम यहीं नहीं रुकेंगे और अगली पोस्ट में और भी महत्वपूर्ण और हमारे इतिहास से जुडी और रोचक जानकारी लायेंगे, तबतक के लिए नमस्कार|