नमस्कार दोस्तों, काम की बात में आपका स्वागत है, मैं हूँ आपका दोस्त और इस पोस्ट का होस्ट… आज हम 5 ऐसे मंदिरों की बात करेंगे जिनके बारे में आपने कभी नहीं सूना होगा| तो चलिए शुरू करते हैं|

  1. चेन्नाकेश्वा मंदिर

चेन्नाकेशव मंदिर विष्णु का एक रूप है व इसी तरह यह मंदिर भगवान् विष्णु को समर्पित है| हिन्दू ग्रंथों में भी इसका सम्पूर्ण वर्णन किया गया है| यह मंदिर अपनी वास्तुकला, मूर्तियाँ, शिलालेखों और इतिहास के लिए उल्लेखनीय है| इस तारे के आकर के मंदिर को बनने में 3 पीढियां, 103 साल की कड़ी महनत लगी थी| इसे कई बार लूटा गया व श्रतिगस्त भी किया गया परन्तु बार बार इसकी मरम्मत व पुन्निर्मान भी किया गया| इस मंदिर की बाहर की दीवारों पर उत्कृष्ट कलाकृतियाँ हैं जो पुराणों और महाकाव्यों को दर्शाती है| यही नहीं बल्कि दीवारों पर बारीक आकृतियाँ उकेरी गयी है| और अन्दर की कारीगरी तो बाहर की तुलना से भी महीन है| मंदिर के स्तंभों की जटिल नक्काशी को अँधेरे में भी देखा जा सकता है| कोई भी 2 स्तम्भ सामान नहीं है| इस मंदिर में 3 प्रवेश द्वार है, मंदिर के सामने प्रवेश द्वार पर एक विशाल गोपुर और भगवान् विष्णु के वाहक गरुडा की एक शानदार मूरती है| मंदिर के गर्भगृह में काले पत्त्हत से भगवन विजय नारायण जी की 3.7 मीटर लम्बी एक शानदार प्रतिमा है| एक प्रतिमा लगभग 3 फीट ऊँचे आसन पर है, लगभग 6 फीट ऊँचे एक प्रामंडल के साथ है| मूर्ती के 4 हाथ है, उपरी हाथों में चक्र और शंख और निचले हाथों में गदा और कमल है| इस मूर्ती की प्रभामंडल में भगवान् विष्णु जी के 10 अवतार हैं, जो बहुत अच्छी तरह से गड़े गए हैं| इनमे मत्स्य, कूर्म, वराह, नरसिंह, वामन, परशुराम, श्रीराम, श्रीकृष्ण, बुद्ध और कल्कि की चक्रीय नक्काशी है| -खोजकर्ताओं ने बताया है की 94 मूर्तियाँ गायब हैं| लोगो ने statues चुरा कर विदेशो में बेच दिए| दरअसल ये सारे मूर्तियाँ अलग अलग पत्थरो को तराश कर फिर जोड़े गए, ठीक उसी तरह से जैसे आज हम दीवारों पर टीवी को टांगते हैं|

2. ककनमठ मंदिर

आज हम जिस मंदिर की बात करने वाले हैं, वो मध्य प्रदेश के मुरैना जिले के सिहोनियां कस्बे में स्थित है। इस मंदिर को आप सिहोनियां से करीब दो किमी की दूरी से देख सकते हैं। इसके अलावा ये मंदिर जमीन से लगभग 115 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। मंदिर थोड़ा खंडहर की अवस्था में है, और मंदिर में घुसते ही जमीन पर मंदिर के टूटे अवशेष नजर आने लगेंगे।

ये प्राचीन मंदिर शिव भगवान को समर्पित है। भगवान शिव का ये मंदिर काफी ऊंचाई पर स्थित है।
इस मंदिर को कछवाहा वंश के राजा कीर्ति राज ने 11वीं शताब्दी में बनवाया था। ऐसा माना जाता है कि रानी ककनावती महादेव की बड़ी भक्त थी, जिस वजह से इस मंदिर का नाम रानी के नाम पर रखा गया। ऐसा कहा जाता है कि मौसम की वजह से यहां स्थित कई छोटे-छोटे नष्ट हो चुके हैं।

इस मंदिर से एक दिलचस्प बात भी जुड़ी हुई है, माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण एक रात में भूतों ने एक साथ मिलकर किया था, लेकिन मंदिर बनाते-बनाते सुबह हो गई और निर्माण को फिर बीच में ही छोड़ना पड़ गया। इस मंदिर को भूतों का भी मंदिर कहते हैं, इस मंदिर को आप देखेंगे, तो आपको ये देखने में अधूर ही लगेगा। खैर, इसमें कितनी सच्चाई है इससे जुड़े किसी भी तरह के सटीक प्रमाण नहीं हैं।

इस मंदिर को देखकर ऐसा लगता है कि यह कभी भी गिर सकता है, लेकिन हजारों वर्ष से लेकर आज भी यह मंदिर वैसे ही खड़ा है। आंधी-तूफान में भी मंदिर का कोई भी हिस्सा हिलता-डुलता नहीं है।

कई लोगों का मानना है कि वैज्ञानिकों ने भी इस मंदिर का निरीक्षण कर चुके हैं और उन्हें यह मालूम नहीं चल सका कि इसका निर्माण कैसे किया गया है। कहा जाता है कि यहां कई मूर्तियां टूटी हुई अवस्था में हैं।

3. वीरभद्र मंदिर

लेपाक्षी मंदिर, जिसे वीरभद्र मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, प्राचीन भारतीय वास्तुकला के चमत्कारों में से एक है। चट्टान से उकेरी गई, पत्थर की यह भव्यता महान विजयनगर साम्राज्य के बारे में बहुत कुछ कहती है। पुराणों के अनुसार, वीरभद्र मंदिर का निर्माण ऋषि अगस्त्य ने करवाया था। मंदिर में गणेश, नंदी, वीरभद्र, शिव, भद्रकाली, विष्णु और लक्ष्मी की मूर्तियाँ महत्वपूर्ण देवता हैं। यह भी माना जाता है कि माता सीता को बचाने के लिए रावण से युद्ध के बाद पक्षी जटायु इसी स्थान पर गिरे थे। परन्तु जो बात वास्तव में हर किसी को सबसे अधिक आश्चर्यचकित करती है वह यह है कि कैसे लेपाक्षी मंदिर के खंभे हवा में लटकते हैं| विजयनगर शैली में 16वीं शताब्दी के इस शानदार पत्थर के मंदिर में लगभग 70 स्तंभ हैं, लेकिन यह सबसे प्रसिद्ध है और प्राचीन और मध्यकालीन भारत के मंदिर निर्माताओं की इंजीनियरिंग प्रतिभा को श्रद्धांजलि है। ऐसा कहा जाता है कि ब्रिटिश काल के दौरान, एक ब्रिटिश इंजीनियर ने इसके समर्थन के रहस्य को उजागर करने के असफल प्रयास में इसे स्थानांतरित करने की कोशिश की थी। परन्तु ना तो जिज्ञासु ब्रिटिश इंजीनियर (पहचान अज्ञात) और न ही उनके बाद कोई भी इस रहस्य को समझाने में सक्षम है कि लेपाक्षी मंदिर में लटकता हुआ स्तंभ कैसे बनाया गया था।

4. लखामंदिर शिव मंदिर

जिस चमत्कारी मंदिर की हम बात कर रहे हैं दरअसल वह मंदिर देवभूमि कहे जाने वाले उत्तराखंड की राजधानी, देहरादून से कुछ दूरी पर लाखामंडल नामक स्थान पर ल्खामंदिर शिव मंदिर स्थित है। मान्यताओं के अनुसार महाभारत काल में यहां पांडवों को जलाकर मारने के लिए दुर्योधन ने लाक्षागृह बनाया था। अज्ञातवास के दौरान युधिष्ठर ने शिवलिंग की स्‍थापना इसी स्‍थान पर की थी। जो मंदिर में आज भी मौजूद है। ल्खामंदिर शिव मंदिर में मौजूद शिवलिंग को महामुंडेश्वर के नाम से जाना जाता है। मंदिर के प्रांगण में मौजूद इस शिवलिंग के सामने दो द्वारपाल पश्चिम की ओर मुंह करके खड़े हैं। माना जाता है कि कोई भी मृत्यु को प्राप्त किया हुआ इंसान इन द्वारपालों के सामने रख दिया जाता था तो पुजारी द्वारा अभिमंत्रित जल छिड़कने पर वह जीवित हो जाता था। इस प्रकार मृत व्यक्ति यहां लाया जाता था और कुछ पलों के फिर से ‌जिंदा हो जाता था। जीवित होने के बाद उक्त व्यक्ति शिव नाम लेता है व गंगाजल ग्रहण करता है। गंगाजल ग्रहण करते ही उसकी आत्मा फिर से शरीर त्यागकर चली जाती है। मंदिर की पिछली दिशा में दो द्वारपाल पहरेदार के रूप में खड़े नजर आते हैं, दो द्वारपालों में से एक का हाथ कटा हुआ है जो एक अनसुलझा रहस्य बना हुआ है।

5. बृहदेश्वर मंदिर

बृहदेश्वर मंदिर तमिलनाडु के तंजावुर (तंजोर) में स्थित एक प्राचीन मंदिर है, जिसका निर्माण राजा चोल (I) द्वारा 1010 ईस्वी में करवाया गया था। बृहदेश्वर भगवान शिव को समर्पित एक प्रमुख मंदिर है जिसमें उनकी नृत्य की मुद्रा में मूर्ति स्थित है जिसको नटराज कहा जाता है। मंदिर को राजेश्वर मंदिर, राजराजेश्वरम और पेरिया कोविल के नाम से भी जाना जाता है। एक हजार साल पुराना यह मंदिर यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों की सूचि में शामिल है, और अपने असाधारण ऐतिहासिक और सांस्कृतिक मूल्यों की वजह से काफी प्रसिद्ध है।

आपको जानकर हैरानी होगी कि बृहदेश्वर मंदिर निर्माण 1,30,000 टन ग्रेनाइट से किया गया है, बताया जाता है कि इस ग्रेनाइट यहां के पास के इलाके से नहीं लाया गया। यह ग्रेनाइट कहा से लाई गई है यह अब तक एक बड़ा रहस्य है, क्योंकि उस समय इतनी मात्रा में ग्रेनाइट लाना एक बहुत बड़ी बात है।
बृहदेश्वर मन्दिर भारत के सबसे बड़े मंदिरों में से एक है और चोल वंश की वास्तुकला का एक बेहतरीन नमूना है।
बृहदेश्वर मंदिर अपनी विशिष्ट वास्तुकला के लिए जाना जाता है। इस मंदिर की सबसे खास बात यह है कि इस मंदिर के गुंबद की छाया धरती पर नहीं पड़ती। इसकी यह चमत्कारी वास्तुकला कई पर्यटकों आकर्षित करती है।

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तो दोस्तों आपको ये 5 अनोखे मंदिर कैसे लगे? हमे कमेंट करके जरुर बताये और अपना गौरव शाली इतिहास लोगो के साथ जरुर संझा करे| हम मिलेंगे आपको अगले पोस्ट में तब तक के लिए नमस्कार|

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