विश्वविख्यात दार्शनिक आचार्य रजनीश, जिन्हें पूरा संसार उन्हें ओशो के नाम से जानता है| उनका जन्म कुचवाड़ा (रायसेन, मप्र) में हुआ, बचपन गाडरवारा में बीता और उच्च शिक्षा जबलपुर में हुई। अपने जीवनकाल में उन्हें एक विवादास्पद रहस्यवादी, गुरु और आध्यात्मिक शिक्षक माना जाता था।
ओशो का शुरूआती जीवन | Osho Biography
ओशो का जन्म उनके नाना के यहां कुचवाड़ा में 11 दिसंबर 1931 हुआ। तब उनका नाम कारन किया गया रजनीश चन्द्रमोहन जैनद्य ऐसा कहा जाता है की ओशो जब पैदा हुए तो तीन दिनों तक न तो रोए और न ही हंसे। इस बात को लेकर नाना-नानी परेशान थे लेकिन तीन दिनों के बाद ओशो हंसे भी और रोए भी। नाना-नानी ने नवजात अवस्था में ही ओशो के चेहरे पर एक अद्भुत आभामण्डल देखा था। इस बात का जिक्र उन्होंने अपनी किताब ‘स्वर्णिम बचपन की यादें‘ में किया है।
ओशो के बचपन के दोस्त स्वामी शुक्ला बताते हैं कि बचपन में ओशो न केवल बेहद शरारती थे, बल्कि एक निडर व्यक्ति भी थे। उन्होंने बताया की ओशो जब 12-13 वर्ष के थे तो रातभर श्मशानघाट पर यह पता लगाने के लिए जाते थे कि आदमी मरने के बाद कहां जाता है। एक बार तो उन्होंने जिद पकड़ ली कि स्कूल जाएंगे तो सिर्फ हाथी पर, उनके पिता ने हाथी बुलवाया भी और तब ओशो हाथी पर बैठकर स्कूल गए। बचपन में नदी में नहाने के दौरान ओशो अपने साथियों को पानी में डुबा दिया करते थे और उनसे कहते थे कि मैं यह देखना चाहता हूं कि मरना क्या होता है।
ओशो की प्रिय पुस्तकें
ओशो गाडरवारा के बहुत पुराने सार्वजनिक पुस्तकालय में एक दिन में तीन किताबें पढ़ा लिया करते थे । आज भी ओशो के हस्ताक्षर की हुईं किताबों को धरोहर मानकर इस पुस्तकालय में सहेजकर रखा हुआ है द्य ओशो ने जर्मनी के इतिहास, हिटलर, मार्क्स, भारतीय दर्शन आदि से संबंधित किताबों का अध्ययन कर डाला था।
1951 में उन्होंने स्कूल की शिक्षा पूरी की और दर्शनशास्त्र पढ़ने का निर्णय लिया।
1953 में 21 वर्ष की आयु में ओशो को मौलश्री वृक्ष के नीचे प्रबोध प्राप्त हुआ द्य उन्होंने सागर विश्वविद्यालय से दर्शन में स्नातक और स्नातकोत्तर की उपाधि ली द्य इसके बाद 1958 में ओशो रामपुर संस्कृत कॉलेज और जबलपुर यूनिवर्सिटी में दर्शनशास्त्र के लेक्चरर बने और फिर 1960 में उन्हें प्रोफेसर के पद पर प्रमोट कर दिया गया। अपने शिक्षक होने के साथ-साथ वे पुरे भारत के राज्यों में “आचार्य रजनीश” के रूप में जाकर अपने अध्यात्मिक भाषण दिया करते थे। उन्होंने समाजवाद का विरोध किया और महसूस किया कि भारत मात्र पूंजीवाद, विज्ञानं, प्रोद्योगिकी और जन्म नियंत्रण के माध्यम से ही समृद्ध हो सकता है।
ओशो के भाषण
उन्होंने अपने भाषणों में कई प्रकार के मुद्दों को भी उठाया जैसे उन्होंने रुढ़िवादी भारतीय धर्म और अनुष्ठानों की आलोचना की और कहा की सेक्स अध्यात्मिक विकास को प्राप्त करने की दिशा में पहला कदम है। इस भाषण के कारन उनकी आलोचना तो हुई पर साथ ही साथ और भी लोगों को अपने विचारों से आकर्षित भी किया। उसके बाद सम्रिढ व्यक्ति उनसे अध्यात्मिक विकास पर विचार करने के लिए आने लगे और उन्हें दान भी मिलने लगा द्य इसके साथ ही उनके इस कार्य में भी वृद्धि हुई थी|
1962 में वे 3-10 दिन के ध्यान शिविर लगाने लगे और जल्द ही ध्यान केन्द्रित करना उनकी शिक्षाओं में जाना-जाने लगा। 1966 में उन्होंने अपने शिक्षण नौकरी को छोड़ कर खुद को पूर्ण रूप से आध्यात्मिकता के लिए समर्पित करने का निर्णय लिया। 1970 में उन्हें हिन्दू नेताओं आलोचनायो के तहत भारतीय प्रेस द्वारा “सेक्स गुरु” का नाम दिया गया। ओशो ने हिन्दू ,मुस्लिम ,सिख , इसाई , सूफी , जैन जैसे कई धर्मो पर प्रवचन दिया और वो अक्सर इशु ,मीरा, नानक , कबीर , गौतम बुद्ध, महावीर, ,दादू ,रवीन्द्रनाथ टैगोर जैसे कई महापुरुषों के रहस्यों के बारे में प्रवचन दिए|
ओशो का आध्यात्मिक जीवन और प्रवचन
जून 1964 में रणकपुर शिविर में पहली बार ओशो के प्रवचनों को रिकॉर्ड किया गया और किताब में भी छापा गया। ओशो ने हर एक पाखंड पर चोट की। सन्यास की अवधारणा को उन्होंने भारत की विश्व को अनुपम देन बताते हुए सन्यास के नाम पर भगवा कपड़े पहनने वाले पाखंडियों को खूब लताड़ा। ओशो ने सम्यक सन्यास को पुनरुज्जीवित किया है। उनकी नजर में संन्यासी वह है जो अपने घर-संसार, पत्नी और बच्चों के साथ रहकर पारिवारिक, सामाजिक जिम्मेदारियों को निभाते हुए ध्यान और सत्संग का जीवन जिए। उनकी दृष्टि में एक संन्यास है जो इस देश में हजारों वर्षों से प्रचलित है। अपने क्रान्तिकारी विचारों से उन्होने लाखों अनुयायी और शिष्य बनाये।
ओशो ने अपने संपूर्ण जीवनकाल में 35 सालो तक हजारों प्रवचन दिये और एक कीर्तिमान स्थापित किया । उनके प्रवचन 5 हजार घंटों की रिकॉर्डिंग व 650 से अधिक पुस्तकों के रूप में उपलब्ध हैं। युक्रांद, रजनीश टाइम्स, ओशो टाइम्स, ओशो वर्ल्ड, यैस ओशो जैसी पत्रिकाएं उनके विचारों की प्रचारक रही हैं। संभोग से समाधि की ओर इनकी सबसे चर्चित और विवादास्पद पुस्तक है। इनके नाम से कई आश्रम चल रहे है। अमेरिका के लोगों की तो उनके प्रति अटूट भक्ति-भावना थी ।
ओशो सन्यासी
1970 में रजनीश ने ज्यादातर समय बॉम्बे में अपने शुरुवाती अनुयायीओ के साथ व्यतीत किया, जो “नव-सन्यासी” के नाम से जाते थे। इस समय में वे ज्यादातर आध्यात्मिक ज्ञान ही देते थे और दुनियाभर के लोग उन्हें रहस्यवादी, दर्शनशास्त्री, धार्मिक गुरु और ऐसे बहुत से नामो से बुलाते थे। 1974 में ओशो पुणे में स्थापित हुए, जहाँ उन्होंने अपने फाउंडेशन और आश्रम की स्थापना की ताकि वे वहाँ भारतीय और विदेशी दोनों अनुयायीओ को “परिवर्तनकारी उपकरण” प्रदान कर सके। 1969 में ओशो के अनुयायियो ने उनके नाम पर एक फाउंडेशन बनाया जिसका मुख्यालय मुंबई था। बाद में उसे पुणे के कोरेगांव पार्क में स्थानांतरित कर दिया गया। वह स्थान “ओशो इंटरनेशनल मैडिटेशन रिसोर्ट ” के नाम से जाना जाता है। 1970 के अंत में मोरारी देसाई की जनता पार्टी और उनके अभियान के बीच हुए विवाद ने आश्रम के विकास में रूकावट बना दी ।
Osho Thoughts on Life
1980 में ओशो “अमेरिका” चले गए और वहां सन्यासियों ने ऑरेगोन के वास्को काउंटी में “रजनीशपुरम” की स्थापना की द्य पर अमरीकी अधिकारियों को रजनीश के शिष्यों की बढ़ती तादाद ने चैंका दिया. दरअसल रजनीश के शिष्य कहीं दूर की सोच रहे थे| उनकी एक शिष्य एन कहती हैं की , “हमने वहां खेती तो की ही, झील बना दिए, शॉपिंग मॉल खोल दिए, ग्रीन हाउस और हवाई अड्डे बना दिए, एक बड़ा और आत्मनिर्भर शहर बसा दिया| हमने उस रेगिस्तान को बदल कर रख दिया|”
उसके बाद उनके शिष्यों ने 1982 में रजनीशपुरम नामक शहर का पंजीकरण कराना चाहा. लेकिन स्थानीय लोगों ने इसका विरोध किया और उन पर मुकदमा दर्ज करवा दिया द्यबाद की जांच से पता चला कि रजनीश के शिष्यों ने जहरीले सालमोनेला बैक्टीरिया पर तरह तरह के प्रयोग करने शुरू कर दिए|
अमरीकी अधिकारी कहते हैं, “पहले तो रजनीश के शिष्यों ने कई जगहों पर सालमोनेला का छिड़काव कर दिया, कुछ ख़ास असर नहीं देखे जाने पर उन्होंने दूसरी बार यही काम किया, ‘‘इसके बाद उन्होंने सलाद के पत्तों पर इस बैक्टीरिया का छिड़काव कर दिया. जल्द ही लोग बीमार पड़ने लगे. डारयरिया, उल्टी और कमजोरी की शिकायत लेकर लोग अस्पताल पंहुचने लगे.” कुल मिला कर 751 लोग बीमार हो कर अस्पतालों में दाख़िल कराए गए|
रजनीश के चेलों को लगने लगा कि सारे लोग उनके ख़िलाफ हैं. आश्रम के अंदर ऐन जैसे लोगों पर शक किया जाने लगा. ऐन को कम्यून से निकाल दिया गया| सितंबर 1985 में सैकड़ों लोग कम्यून छोड़ कर यूरोप चले गए. कुछ दिनों के बाद रजनीश ने लोगों को संबोधित किया|
उन्होंने अपने शिष्यों पर टेलीफोन टैप करने, आगजनी और सामूहिक तौर पर लोगों को जहर देने के आरोप लगाते हुए ख़ुद को निर्दोष बताया| उन्होंने कहा कि इन बातों की उन्हें कोई जानकारी नहीं थी|
सरकार ने रजनीशपुरम की जांच के आदेश दे दिए. जांच में शहर के अंदर सालमोनेला बैक्टीरिया पैदा करने और बायोटेरर अटैक वाली प्रयोगशाला और टेलीफोन टैप करने के उपकरण पाए गए.
रजनीश के शिष्यों पर मुकदमा चला. उनके शिष्यों ने ‘प्ली बारगेन’ के तहत कुछ दोष स्वीकार कर लिए. उनके तीन शिष्यों को जेल की सजा हुई| रजनीश पर नियम तोड़ने के आरोप लगे और उन्हें भारत भेज दिया गया|
Osho Rajneesh Death Cause
उनकी मोंत आज भी एक गहरा राज है और इस राज को हम अगली विडियो में बताएँगे द्य तो ओशो पर अगली विडियो देखना बिलकुल न भूले
और आपको ये विडियो कैसी लगी हमे जरुर बताये, और हमे ये भी बताये की की आप किस महान शक्शयियत की जीवनी देखना चाहते है