जल के अन्दर समाया अनोखा मंदिर – एक मंदिर जहाँ पूजा करोगे तो हो जाओगे बर्बाद|
नमस्कार दोस्तों! स्वागत है आपका काम की बात में और आज हम आपको बताएँगे 5 अनोखे मंदिर जो की आपके रोंगटे खड़े कर देंगे|
श्री स्तंभेश्वर महादेव मंदिर

मंदिर जो सिर्फ दिन में दो बार ही दिखता है और फिर पानी के अन्दर गायब हो जाता है|
150 साल पुराना यह मंदिर गुजरात की राजधानी गांधीनगर से लगभग 175 किमी दूर जंबूसर के कवि कंबोई गांव में मौजूद है जहाँ मंदिर को देखने के लिए सुबह से शाम तक लोगो की लाइन लगी रहती है|
शिवपुराण के अनुसार, ताड़कासुर नाम के असुर ने भगवान शिव की तपस्या करके यह वरदान माँगा की उसे शिव पुत्र के अलावा और कोई नहीं मार सकता था और पुत्र की आयु भी 6 दिन की ही होनी चाहिए। वरदान मिलने के बाद, ताड़कासुर ने हर तरफ लोगों को परेशान करना और उन्हें मारना शुरू कर दिया। ये सब देखकर देवताओं और ऋषि मुनियों ने शिव जी से उसका वध करने की प्रार्थना की और फिर भगवान् शिव पुत्र कार्तिकेय ने श्वेत पर्वत कुंड से 6 दिन के लिए जन्म लिया और असुर का वध कर दिया, लेकिन जब उन्हें पता चला की असुर शिव भक्त था तो उन्हें बेहद दुख पहुंचा|
इसके बाद भगवान विष्णु ने उन्हें प्रायश्चित करने का मौका दिया और उन्हें यह सुझाव दिया कि जहां उन्होंने असुर का वध किया है, वहां वो शिवलिंग की स्थापना करें। और इस तरह इस मंदिर को बाद में स्तंभेश्वर मंदिर के नाम से जाना जाने लगा। ये मंदिर दिन में सिर्फ दो बार इसलिए खुलता है क्योकि पुरे दिन समुद्र का स्तर इतना बढ़ जाता है कि मंदिर पूरी तरह से डूब जाता है और फिर पानी का स्तर कम होने के बाद ये मंदिर फिर से दिखाई देने लगता है और ऐसा सुबह शाम दो बार होता है।

बाथू की लड़ी मंदिर
मंदिर जो न सिर्फ 8 महीने पानी के अन्दर समाया रहेता है बल्कि दावा किया जाता है की ये मंदिर पांडव ने बनाया था और इधर स्वर्ग जाने वाली सीढि़यों के अवशेष भी हैं|
यह मंदिर बाथू नामक पत्थर से बना है और इस मंदिर परिसर में मुख्य मंदिर के अलावा अन्य आठ छोटे मंदिर भी हैं, जिन्हें दूर से देखने पर एक माला में पिरोया हुआ-सा प्रतीत होता है। इसलिए इस खूबसूरत मंदिर को बाथू की लड़ी (माला) कहा जाता है। हालाँकि किसी समय पर इनकी गिनती 11 हुआ करती थी परन्तु बाढ के कारण दो मंदिर ढह गए|
ये मंदिर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जनपद में है| और इन मंदिरों में शेषनाग, विष्णु भगवान की मूर्तियां स्थापित हैं और बीच में एक मुख्य मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। हालाँकि कई लोगो का मानना ये भी है की ये मंदिर भगवान् विष्णु जी को समर्पित है| यहां रहने वालों का मानना है कि इस मंदिर का निर्माण स्थानीय राजा द्वारा किया गया था।
जबकि कुछ लोगों का कहना है कि इसका निर्माण पांडवों ने किया था और अपने अज्ञातवास के दौरान यहीं स्वर्ग की सीढ़ी बनाने की कोशिश की थी। हालांकि, इसे बनाने में वो सफल नहीं हो सके। क्योंकि इन सीढि़यों का निर्माण उन्हें एक रात में करना था। और पांडवों ने स्वर्ग तक सीढ़ियां बनाने के लिए भगवान श्रीकृष्ण की मदद मांगी थी| भगवान् श्रीकृष्णा ने उनकी सहायता करने के लिए 6 महीने की एक रात कर दी थी| पांडवो ने सीडी बनानी शुरू की परन्तु जब सिर्फ ढाई सीढियां बनानी रह रही थी तभी सुबह हो गयी थी और इसीलिए स्वर्ग की सीढ़ियां तैयार नहीं हो सकी।
आपको जानकर हैरत होगी कि आज भी इस मंदिर में स्वर्ग में जाने वाली 40 सीढ़ियां मौजूद हैं। हर साल ये मंदिर जल स्तर के बढ़ने पर 8 महीने पानी के अन्दर और जल स्तर गिरने पर केवल 4 महीने ही बाहर रहता है| और यहाँ जाने का एकमात्र साधन नाव है|

ऐरावतेश्वर मंदिर
अब हम आपको बताएँगे उस मंदिर के बारे में जिसकी सीढियों पर पैर रखते ही मधुर ध्वनि सुनाई देती है|
ऐरावतेश्वर मंदिर एक हिंदू मंदिर है जिसे दक्षिणी भारत के 12वीं सदी में राजा चोल द्वितीय द्वारा बनवाया गया था। ये मंदिर तमिलनाड़ु राज्य में कुंभकोणम के पास दारासुरम में स्थित है और यूनेस्को द्वारा वैश्विक धरोहर घोषित है। यह भगवान शिव को समर्पित है और उन्हें यहां ऐरावतेश्वर के रूप में जाना जाता है क्योंकि इस मंदिर में हाथी एरावत के द्वारा भगवान शिव की पूजा की गई थी और यहीं पर ऐरावत को श्राप से मुक्ति मिली थी।
मान्याता है कि ऐरावत हाथी सफेद था लेकिन ऋषि दुर्वासा के श्राप के कारण अपना रंग बदल जाने से बहुत दुःखी था, उसने इसी मंदिर के पवित्र जल में स्नान करके अपना सफेद रंग पुनः प्राप्त किया था। तबसे यह मंदिर ऐरावातेषर मंदिर कहलाता है|
एक खास चीज जो इस मंदिर को बेहद दिलचस्प और खास बनाती है, वो यहां की सीढ़ियां। मंदिर के एंट्री वाले द्वार पर एक पत्थर की सीढ़ी बनी हुई है, जिसके हर कदम पर अलग-अलग ध्वनि निकलती है। इन सीढ़ियों के माध्यम से आप आप संगीत के सातों सुर सुन सकते हैं।
मंदिर के स्तंभ 80 फीट ऊंचे हैं तथा आंगन के पूर्व में नक्काशीदार इमारतों का समूह है। जिनमें से एक बलिपीट कहा जाता है जहाँ पर बली दी जाती है| बलीपीट की कुर्सी पर एक छोटा मंदिर है जिसमें गणेश जी की छवि है और चौकी के दक्षिणी तरफ शानदार नक्काशियों वाली 3 सीढियों का समूह है। मंदिर के आंगन के दक्षिण पश्चिमी कोने में 4 तीर्थ वाला एक मंडप है। जिनमें से एक पर यम की छवि बनी है।
सीढियों पर चलने से ध्वनि क्यूं सुनाई देती है, ये राज़ तो कोई नहीं जानता परन्तु समय के साथ सीढियों को काफी नुक्सान पहुंचा है| और इसे सरक्षित करने के लिए इसे लोहे के पिंजरे से बचाया गया है|

रत्नेश्वर मंदिर
मंदिर जो लीनिंग टावर ऑफ़ पिसा से भी ज्यादा लम्बा है और झुका हुआ है| 9 डिग्री के झुकाव के बाद भी स्थिर है ये अपनी जगह|
आपको शायद अब तक इस मंदिर के बारे में पता नहीं होगा, लेकिन यह एक ऐसी इमारत है, जो पीसा से भी ज्यादा झुकी हुई और लंबी है। पीसा टॉवर लगभग 4 डिग्री तक झुका हुआ है, लेकिन वाराणसी में मणिकर्णिका घाट के पास स्थित रत्नेश्वर मंदिर लगभग 9 डिग्री तक झुका हुआ है। कुछ रिपोर्टों के अनुसार, मंदिर की ऊंचाई 74 मीटर है, जो पीसा से 20 मीटर ज्यादा है और यह मंदिर सदियों पुराना भी है।
मंदिर का इतिहास
ऐसा कहा जाता है कि ये मंदिर राजा मानसिंह के एक सेवक ने अपनी मां रत्ना बाई के लिए बनवाया था। मंदिर के बनने के बाद, उस व्यक्ति ने गर्व से घोषणा की कि उसने अपनी मां का कर्ज चुका दिया है। जैसे ही ये शब्द उनकी जुबान से निकले, मंदिर पीछे की तरफ झुकने लगा, और ये दर्शाया लिए कि किसी भी मां का कर्ज कभी नहीं चुकाया जा सकता ।
इस तीर्थ का गर्भगृह वर्ष के ज्यादातर समय गंगा के जल के नीचे रहता है। देखकर लगता है की बहुत ही दुर्लभ संयोजन के साथ इस मंदिर को पवित्र गंगा नदी के निचले स्तर पर बनाया गया है। सबसे दिलचस्प बात तो ये है कि जल स्तर मंदिर के शिखर तक भी पहुंच सकता है। ऐसा भी लगता है कि जैसे बनाने वाले को पता था कि इस मंदिर का ज्यादातर हिस्सा पानी के भीतर रहेगा और इसीलिए ही इसका निर्माण बहुत कम जगह पर किया गया है।
हालांकि, यह मंदिर आज भी पानी के भीतर है, लेकिन इसे आज भी रक्षित और बेहद ही मूल्यवान माना जाता है। एक और महत्वपूर्ण बात ये की मानसून के दौरान इस मंदिर में कोई भी अनुष्ठान नहीं किया जाता। बारिश के मौसम में यहाँ कोई भी पूजा या प्रार्थना की आवाज सुनाई नहीं देती और ना ही घंटियों को बजते कोई देख और सुन नहीं सकता। क्योंकि कुछ लोगों का यह भी मानना है कि यह एक शापित मंदिर है और पूजा अर्चना करने से उनके घर में कुछ बुरा हो सकता है।

एकं हथिया देवाल मंदिर
यहाँ पूजा करने वाला हो जाता है बर्बाद| एक रात में मंदिर तैयार हो गया था और बनाने वाला हो गया था गायब|
पिथौरागढ़ के बल्तिर गांव में बना यह मंदिर कत्यूरी काल का है| इस मंदिर के निर्माण को लेकर दो कथाएं प्रचलित हैं|
एक कथा के अनुसार गांव में एक मूर्तिकार रहता था जिसका किसी दुर्घटना में हाथ कट गया था| ऐसे में गांव वालों ने उसका मजाक बना शुरू कर दिया| और उसने अपने अपमान होने पर गांव छोड़ने का फैसला किया| फिर वह एक रात गांव छोड़कर और अपनी सारे औजार लेकर दक्षिण की ओर चला गया, और वहां पर उसे एक चट्टान दिखी तो उसने उसे काटकर शिव मंदिर तैयार कर दिया| गाँव वाले सभी दक्षिण की ओर शौच करने जाते थे तो सुबह जब गांव वाले वहां पहुंचे तो उन्हें चट्टान की जगह एक मंदिर नजर आया. इसके बाद गांव वाले ने कारीगर को खोजने का प्रयास किया, लेकिन वो न किसी को मिला न कभी दिखा|
वहीं एक दूसरी कथा के अनुसार एक कारीगर ने राजा के लिए भव्य ईमारत बनाई| और राजा भी कारीगर की कुशलता से प्रभावित हुआ, लेकिन राजा को लगा की यह दूसरी ईमारतें भी इसी तहर से भव्य बना सकता है| ऐसे में राजा ने कारीगर का एक हाथ काट दिया, लेकिन इस प्रयास के बाद भी वह कारीगर से उसकी कुशलता नहीं छीन सका| इस घटना के बाद कारीगर ने राज्य छोड़ने का फैसला लिया, लेकिन जाने से पहले उसने अपने एक हाथ से चट्टान काट कर मंदिर बना दिया और वह राज्य छोड़कर चला गया|
इस मंदिर को एक हथिया मंदिर कहा जाता है, लेकिन इसमें पूजा-अर्चना नहीं होती है क्योंकि इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग विपरीत दिशा में स्थापित किया गया है| गांव वालों का कहना है की इसकी पूजा फलदायक नहीं होती है बल्कि दोषपूर्ण मूर्ति का पूजन अनिष्ट का कारक माना जाता है| कहा जाता है की एक हाथ वाले कारीगर की तरफ से जब रात को यह मंदिर तैयार किया गया तो अंधेरे में कारीगर ने विपरीत दिशा में शिवलिंग स्थापित कर दिया और इसके बाद मंदिर तो अस्तित्व में आ गया, लेकिन प्रयासों के बाद भी नियमित पूजा-अर्चना संभव नहीं हो सकी|
तो दोस्तों आपको ये 5 रहस्यमयी मंदिरों की जानकारीकैसी लगी हमें कमेंट में ज़रूर बताएं| इससे भी बेहतर जानकारी के साथ हम आपको मिलेंगे अगली पोस्ट में| तब तक के लिए नमस्कार…