अपने युग के ये वो महाज्ञानी है जिसने वेदों की रचना की, वो ज्ञानी जिसने 2 ब्रह्मशिर को आसानी से रोक दिया, ये वो ज्ञानी है जिन्होंने मृत को दुबारा से पृथ्वी पर बुलाया और उनके परिजनों से भी मिलवाया, ये वो ज्ञानी हैं जिनके लिए स्वयं गणेश भगवान् ने अपना दांत तोड़ कर उनके लिए वेदों को लिखा| जी हां आज हम बात करेंगे महर्षि वेद व्यास जी की| जो की आज भी अमर हैं और कहाँ है वो कलयुग में, वो भी हम जानेंगे|

नमस्कार दोस्तों, स्वागत है आपका काम की बात में। पिछली पोस्ट में हमने चिरंजीवी हनुमान जी के बारे में बात की थी और हम बात करेंगे दुसरे चिरंजीवी के बारे में की कैसे वो चिरंजीवियों बने, आज कहा हैं, और क्यूं जीवित है

महर्षि वेदव व्यास

महर्षि व्यास, हिन्दू धर्म के प्रमुख ऋषियों में से एक हैं। उनका जन्म क्रितयुग में हुआ था और वे युगों के पारंपरिक ज्ञान के धारक माने जाते हैं। वे विष्णु के 24 अवतारों में से 21 वे अवतार भी माने जाने हैं जो की वेदों व पुरानो का ज्ञान ब्रह्माण्ड के अंत तक लोगो को बाँट ते रहेंगे|

परिवार

महर्षि के पिता श्री पराशर ऋषि जो की एक प्रमुख ऋषि थे और उनकी मां सत्यवती थी, जो शूद्र गृहस्थ की पुत्री थी और बाद में महर्षि पराशर के संगम के बाद कुल गुरु वसिष्ठ की पत्नी बनी थी। व्यास जी कृष्णा द्वैपायन व्यास के नाम से भी जाने जाते हैं| 

कहते हैं की प्रत्येक द्वापर युग में विष्णु व्यास के रूप में अवतरित होकर वेदों के विभाग प्रस्तुत करते हैं। 

पहले द्वापर में स्वयं ब्रह्मा वेदव्यास हुए, दूसरे में प्रजापति, तीसरे द्वापर में शुक्राचार्य, चौथे में बृहस्पति वेदव्यास हुए। इसी प्रकार सूर्य, मृत्यु, इन्द्र, धनजंय, कृष्ण द्वैपायन अश्वत्थामा आदि अट्ठाईस वेदव्यास हुए। 

इस प्रकार अट्ठाईस बार वेदों का विस्तार किया गया। ऐसा माना जाता है कि “वेद व्यास” नाम कोई नाम नहीं बल्कि एक उपाधि है।

इनके जन्म की कहानी और और भी रोचक और दिलचस्प है|

जन्म-कथा

प्राचीन काल में एक राजा थे जिनका नाम सुधन्वा था। एक दिन राजा सुधन्वा अपनी गर्भवती पत्नी रजस्वला को छोड़कर वन में शिकार करने के लिए गए। उनके जाने के बाद, रजस्वला गर्भवती हो गईं और यह खबर उन्होंने अपने पति तक एक शिकारी पक्षी के माध्यम से पहुंचाई। पक्षी राजा के पास पहुंचा और उनसे वीर्य की भरपूर कोठरी को लेकर वापस उड़ चला गया।

इसके दौरान, उस पक्षी का सामना एक और शिकारी पक्षी से हुआ और उनके युद्ध में वीर्य यमुना नदी में गिर गया। यमुना में ब्रह्मा के शाप से मछली बनी एक अप्सरा रहती थी और उसने बहते हुये वीर्य को निगल लिया तथा उसके प्रभाव से वह गर्भवती हो गई। इस अप्सरा के गर्भ से एक लड़का और एक लड़की का जन्म हुआ। एक शिकारी ने इन शिशुओं को पाया, और लड़के का नाम मत्स्यराज और लड़की का नाम मत्स्यगंधा रखा गया।

मत्स्यगंधा के बड़े होने पर, वह एक नाव चलाने लगी, और एक दिन पराशर मुनि उसकी नाव पर बैठकर यमुना नदी को पार करने लगे। पराशर मुनि सत्यवती की सौन्दर्य पर मोहित हो गए और उन्होंने उससे सहवास की इच्छा जताई। सत्यवती ने कहा, “मुनिवर! आप ब्रह्मज्ञानी हैं और मैं एक निषाद कन्या हूँ। हमारा सहवास सम्भव नहीं है।” 

तब पराशर मुनि बोले, “बालिके! तुम चिंता मत करो। प्रसूति होने पर भी तुम कुमारी ही रहोगी।” 

उन्होंने योगबल से चारों ओर घने कुहरे का जाल रचा और सत्यवती के साथ सहवास किया।

इसके बाद, महर्षि वेदव्यास पैदा हुए, जिन्होंने वेदों के ज्ञान को बढ़ावा दिया और वेदांगों में माहिर हो गए। 

उनका नाम वेदव्यास के रूप में प्रसिद्ध हो गया।

महाभारत में भूमिका

महर्षि व्यास भूत भविष्य देख सकते थे और उन्होंने देख लिया था की भविष्य में धर्म धीरे धीरे  क्षीण हो जायेगा| इसी कारण से उन्होंने वेदों को 4 भागो में बांटा ताकि कम स्मरण शक्ति व कम बुद्धि वाला व्यक्ति भी इनको पढ़ सके| महाभारत में महर्षि ने ही द्रोपदी को उसके 5 पति होने का कारण बताया और उनके पिछले जन्म के बारे में भी बताया| और व्यास जी ने ही युधिस्टर को 13 वर्ष बाद होने वाले महासंग्राम के बारे में बताया था की क्षत्रियो का महासंहार होने वाला है|

जब पांडवो के वनवास काल में भी दुर्योधन, दुश्शासन और शकुनी उन्हें मारने की योजना बना रहे थे, तब महर्षि ने अपनी दिव्या दृष्टि से सब जान लिया था और धृतराष्ट्र को समझाया भी था की यदि कौरव नहीं रुके तो सब मारे जायेंगे| बाकी का इतिहास तो आप सब जानते ही हैं|

संजय को भी दिव्या दृष्टि देने वाले मरिशी ही थे| और जब धृतराष्ट्र ने महर्षि के कुतिया में पहुँच कर उनसे अपने युद्ध में मारे गए सभी सम्बन्धियों का दर्शन करने की प्रार्थना की तो उन्होंने अपनी शक्तियों से गंगा जी में खड़े होकर सभी मरे हुए वीरों का आवाहन किया और उन्हें सभी सम्बन्धियों के दर्शन भी करवाए| 

एक महत्वपूर्ण जानकारी आपको और बता दें की हमें महर्षि व्यास के चार पुत्रों का उल्लेख मिलता है। ये चार पुत्र हैं – शुकदेव, धृतराष्ट्र, पांडु और विदुर।

  • महर्षि व्यास ने पुत्र की इच्छा से कठिनतम तप करके भगवान् शिव को प्रसन्न कर लिया था। भगवान् शिव ने भी उनको एक यशस्वी पुत्र(शुकदेव) की प्राप्ति का वरदान दे दिया था।
  • शांतनु और सत्यवती के पुत्र चित्रांगद और विचित्रवीर्य की मृत्यु के बाद सत्यवती ने कुरूवंश को आगे बढ़ाने के लिए अपने ही पुत्र वेद व्यास का सहारा लिया।
  • उन्होंने व्यासजी से नियोग पद्धति का सहारा लेकर संतान उत्पन्न करने के लिए आग्रह किया। व्यासजी ने पहले अंबिका के साथ संभोग किया। उस समय अंबिका की आंखें बंद हो गई जिससे धृतराष्ट्र अंधे पैदा हुए।
  • जब उन्होंने अंबालिका के साथ समागम किया, तो वह डर के मारे पांडु (पीले) रंग की हो गई। इसलिए उनसे उत्पन्न पुत्र का रंग भी पांडु था जिससे उसका नाम पांडु पड़ गया।
  • इसके बाद अंबिका ने अपनी दासी को व्यास मुनि के पास भेज दिया। उस दासी के गर्भ से व्यासजी का जो विद्वान पुत्र उत्पन्न हुआ, वो आगे चलकर विदुर के नाम से प्रसिद्ध हुए।

वे अमर कैसे बने?

माना जाता है की हर ब्रह्माण्ड में अंत तक वेदों और पुराणों का ज्ञान बाटने के लिए व्यास जीवित रहेते है| और इस ब्रह्माण्ड के युग में भी व्यास जी आज भी जीवित हैं| कुछ लोगो का मानना है की वे ओरिसा और छत्तीसगढ़ में फैला हुआ एक घाना जंगल जो की दंडकवन के नाम से जाना जाता है, वहां आज भी वेदव्यास रहते हैं| उत्तराखंड के एक गाँव माणागाँव में केशवतट के पास बद्रीनाथ से 3 किलोमीटर  एक छोटा सा गाँव है वहीँ की एक गुफा में माना जाता है की वेदव्यास जी आज भी जीवीत हैं अपनी अपने पढने लिखने की क्रिया आज भी कर रहे हैं|

वहीं कुछ लोगो का कहना यह भी है की वेद व्यास जी आज भी हिमालय पर्वत पर अपनी तपस्या कर रहे हैं और जब सही समय आएगा तो वे कल्कि के मार्गदर्शक बनेंगे और उन्हें सम्पूर्ण ज्ञान देंगे|

तो दोस्तों आपको ये जानकारी आपको कैसी लगी हमें कमेंट करके ज़रूर बताएं और विडियो को लाइक करना न भूले और ये महत्वपूर्ण जानकारी औरो के सात ज़रूर साँझा करे|

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here